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थूका हुआ आदमी | शाही शायरी
thuka hua aadmi

नज़्म

थूका हुआ आदमी

ज़ाहिद इमरोज़

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ज़िंदगी ने मुझे लकीर पर चलना सिखाया
मैं ने मुन्हरिफ़ होना सीख लिया

उस की अंदाम-ए-नहानी
साँप जनने में मसरूफ़ रही

और वो उन्हें मारने में
वो भी क्या करती

रात भर मेरी जगह इज़्दिहाम सोया रहा
अपनी बेकारी से तंग आ कर

मैं अपना उज़्व नीला करने चला आया
ऐसा करना जुर्म है

मगर क्या क्या जाए
एक भूक मिटाने के लिए दूसरी ख़रीदनी पड़ती है

अदालत ने मेरी आज़ादी के एवज़
मेरे ख़ुसिये माँग लिए

लोगों ने मेरे मादा-ए-तौलीद से
दीवारों पर फूल बना लिए

और इबादत के लिए मेरा उज़्व
इंहिराफ़ ने मुझे कभी क़तार नहीं बनने दिया

मैं ने हमेशा चियूँटियों को गुमराह किया
एक दिन तंग आ कर

ज़िंदगी ने मुझे थूक दिया