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ठहरो! मैं आता हूँ | शाही शायरी
Thahro! main aata hun

नज़्म

ठहरो! मैं आता हूँ

कुमार पाशी

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अगर मेरे फ़साने में मसर्रत का कोई पहलू नज़र आए
समझ लेना

तुम्हारे वास्ते में रात के गुंजान जंगल से
चमकते जुगनुओं की क़ीमती सौग़ात लाया हूँ

मिरे अंदर अंधेरे का समुंदर है
उभरता डूबता रहता हूँ मैं जिस में

तुम्हें मालूम है मेरा अमल अब ख़त्म है, और रात बाक़ी है
अभी इक घात बाक़ी है

मिरे आकाश की हद में अभी सूरज नहीं पहुँचा
घनी तारीकियों में छटपटाता हूँ

मैं अपने जिस्म के दीवार-ओ-दर से सर को टकराता हूँ
पल में टूट जाता हूँ

न घबराओ कि फिर से ख़ुद को यकजा कर रहा हूँ मैं
नसों में अपनी फिर ताज़ा लहू को भर रहा हूँ मैं

तुम्हारे वास्ते मैं रात के गुंजान जंगल से
चमकते जुगनुओं की क़ीमती सौग़ात लाता हूँ

ज़रा ठहरो! में आता हूँ