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तेरी संग | शाही शायरी
teri sang

नज़्म

तेरी संग

शहाब अख़्तर

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ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू
अंदर तक

उतर रही है
हवाएँ

सरसरा रही हैं
हड्डियों ही कोई

राग बज रहा है
ये

तबला
ख़ामोश है बहुत

सावन की फूहारों की थाप तेज़ है
तुम आओ

मेरे संगीत को
संगत देने के लिए