ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू
अंदर तक
उतर रही है
हवाएँ
सरसरा रही हैं
हड्डियों ही कोई
राग बज रहा है
ये
तबला
ख़ामोश है बहुत
सावन की फूहारों की थाप तेज़ है
तुम आओ
मेरे संगीत को
संगत देने के लिए

नज़्म
तेरी संग
शहाब अख़्तर
नज़्म
शहाब अख़्तर
ज़ुल्फ़ों की ख़ुशबू
अंदर तक
उतर रही है
हवाएँ
सरसरा रही हैं
हड्डियों ही कोई
राग बज रहा है
ये
तबला
ख़ामोश है बहुत
सावन की फूहारों की थाप तेज़ है
तुम आओ
मेरे संगीत को
संगत देने के लिए