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तेरे जमाल की दोशीज़गी की क़ौस-ए-क़ुज़ह | शाही शायरी
tere jamal ki doshizgi ki qaus-e-quzah

नज़्म

तेरे जमाल की दोशीज़गी की क़ौस-ए-क़ुज़ह

अलीम सबा नवेदी

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तेरे जमाल की दोशीज़गी की क़ौस-ए-क़ुज़ह
निगाह महबत-ए-इदराक में न क्यूँ रख लूँ

ज़माना-साज़ हूँ मैं आइना सिफ़त हूँ मैं
है वक़्त पीछे मिरे मैं जहाँ जिधर निकलूँ

भँवर भँवर मुझे देता है वुसअ'त-ए-अफ़्कार
हिसार-ए-शोर-ओ-तलातुम में कब तलक मैं रहूँ

कशाकश-ए-ग़म-ए-हस्ती मुझे इजाज़त दे
कुंवारे-पन की हथेली पे तेरा नाम लिखूँ

वो एक नाम फ़लक-आश्ना हयात-आगीं
मैं अपनी साँसों में पैहम रवाँ-दवाँ देखूँ