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तेरा और मेरा साथ | शाही शायरी
tera aur mera sath

नज़्म

तेरा और मेरा साथ

जीफ़ ज़िया

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तेरा और मेरा साथ आलम-ए-बर्ज़ख़ से है
आलम-ए-बर्ज़ख़ या'नी जहाँ अर्वाह इक साथ थीं

मैं और तुम या'नी हम
वहाँ भी इक साथ थे

फिर मुझे और तुम्हें इक साथ
शायद तह-दर-तह इक साथ सुला दिया गया

यहाँ हमारे लिए माँ की कोख को गर्म किया गया
वहाँ मैं और यहाँ तुम ने इक हयूले की शक्ल ली

फ़र्ज़ करो चालीस दिन का इक हफ़्ता हो और तीन हफ़्तों में
हमारा या'नी तुम्हारा और मेरा नूर इक नूर ने उस हयूले में फूँक दिया

तुम पूछती हो कब से मोहब्बत है
तुम सोचती हो कब से आश्ना हैं

जानाँ
हम दुनिया की दरयाफ़्त से पहले आश्ना हैं

हमारी अर्वाह ने दरयाफ़्त से पहले मोहब्बत की थी
जिस्म तो अब मयस्सर हैं

मगर
हम काएनात के वजूद से पहले मिल चुके हैं