तुम ने सुना
मौसम ने सब्ज़े की ज़बानी क्या कहा?
''ये नहीं उन की जगह''
ये भी कहा कि
''मुतरीबों का ताइफ़ा
उन के लिए है सिर्फ़ जिन का सामेआ
मो'तक़िद है सुब्ह-ए-नौ के तरबिया इलहान का''
और ताएरों ने यक ज़बाँ
इस बात की तस्दीक़ की
गर्दन हिलाई साक़ पर
हर फूल ने
और पीठ दे कर अपनी ख़ुशबू रोक ली
मुँह मोड़ कर शाख़ों ने रोकी है हवा
कतरा के गुज़री है रविश देखो सहर
जो थी हमारी दोस्त
अब हम को नहीं पहचानती
क्या कर रहे हैं हम यहाँ?
उट्ठो चलो!
कुछ है हमारा भी वक़ार
देखो! इशारे से बुलाता है हमें वो रेग-ज़ार
नज़्म
तज़लील
आसिफ़ रज़ा