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तज़ादों से इबारत | शाही शायरी
tazadon se ibarat

नज़्म

तज़ादों से इबारत

सईद अहमद

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दुखों के ख़ेमे में बैठ कर
ना-रसा ख़ुशी की ख़ुशी में हँसना

तवील ओ अंजान हिज्र की ख़ार-ज़ार पगडंडियों पे चलते
विसाल लम्हों की ख़ुशबुओं में रची

कोई नज़्म कह के रोना
हवास की दस्तरस में होना

कभी न होना
इन्हीं तज़ादों से ज़ात के हाथ की लकीरों में रम्ज़-ए-मआनी

इन्ही पे क़ाएम मिरे तफ़क्कुर के सिलसिले सब
कलाम ओ हुस्न-ए-कलाम के ढब