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तस्कीन | शाही शायरी
taskin

नज़्म

तस्कीन

अख़्तर-उल-ईमान

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इक मुहक़क़िक़ ने इंसान को बुज़ना जब कहा
मैं वहीं सज्दा-ए-शुक्र में गिर गया

अपनी कोताहियों, ख़ामियों के लिए
आफ़रीनश से अब तक जो शर्मिंदा था

आज वो बोझ, बारे ज़रा कम हुआ