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तशद्दुद | शाही शायरी
tashaddud

नज़्म

तशद्दुद

बलराज कोमल

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उस कमरे की तरतीब से
मैं मानूस था

उस की हर शय से
पत्थर से दीवारों से

छोटी छोटी चीज़ों और किताबों से
मुतरन्निम आवाज़ों से

शोर मचाते हँसते-गाते
गाहे-गाहे लम्हा-भर को

चुप हो जाते
अपने अपने आसमाँ से

तन्हाई में
सुख और दुख की बातें करते लोगों से

नन्ही-मुन्नी सरगोशी में जादू भरती
गुड़िया से

रंग लुटाते उस के नट-खट गुड्डे से
तुम तो मेरे अपने थे

तुम ने ये क्या कर डाला
तुम ने अपने हाथ से

मेरी बरसों की मानूस लकीरें
दरहम-बरहम कर डालें

आवाज़ों की रागनियों की तस्वीरों की
रौशन आँखें

तुम तो मेरे अपने थे
तुम ने ये क्या कर डाला