हम तसव्वुफ़ के ख़राबों के मकीं
वक़्त के तूल-ए-अलम-नाक के पर्वार्दा हैं,
एक तारीक अज़ल नूर-ए-अबद से ख़ाली!
हम जो सदियों से चले हैं
तो समझते हैं कि साहिल पाया
अपनी दिन रात की पा-कूबी का हासिल पाया
हम तसव्वुफ़ के निहाँ-ख़ानों में बसने वाले
अपनी पामाली के अफ़्सानों पे हँसने वाले
हम समझते हैं निशान-ए-सर-ए-मंज़िल पाया
नज़्म
तसव्वुफ़
नून मीम राशिद