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तसल्ली | शाही शायरी
tasalli

नज़्म

तसल्ली

नाहीद क़ासमी

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अपनी अपनी राहों पर मुद्दत तक चलते चलते
आज अचानक इक चौराहे पर जो तुम से मेल हुआ

तो मैं ने तेरी गहरी आँखों में झाँका
और चौंक उठी

इन में तपते सहराओं का बसेरा था
और दूर दूर तक वीराने थे

रीत के धुँदले धुँदले बादल उड़ते फिरते थे
लेकिन मैं ने एक लम्हे को ये मंज़र भी देख लिया

कि तपते जलते सहराओं में
मेरे नाम का इक आँसू, इक ठंडा मीठा नख़लिस्तान भी उगा हुआ था