EN اردو
तरकीब-ए-सर्फ़ी | शाही शायरी
tarkib-e-sarfi

नज़्म

तरकीब-ए-सर्फ़ी

चाैधरी मोहम्मद नईम

;

नोक-ए-मीनार पे अटकी हुई कुमरी से भला
क्या पता ख़ाक चला

''आसमाँ हद्द-ए-नज़र है कि कमीं-गाह-ए-रक़ीब?''
में बताता हूँ मगर अपने सुख़न बीच में है

आसमाँ एक कबूतर है कि जिस के ख़ूँ की
प्यास में सैकड़ों उक़ाब उड़ा करते हैं

मौत बदकार शराबी है पड़ोसी मेरा
रोज़ दरवाज़े के उस पार जो गिर जाता है

ज़िंदगी एक छछूंदर है कि जिस की बद-बू
बू-ए-यूसुफ़ में भी है गिर्या-ए-याक़ूब में भी

इल्म सर्कस के मदारी के दहन का शोला
ज़ाइक़ा मुँह का बदलने को बहुत काफ़ी है

और में एक हसीं ख़्वाब कि जिस में गुम है
ख़्वाब देखने वाला वो कमीं-गह का रक़ीब