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तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो | शाही शायरी
tark-e-wada ki tark-e-KHwab tha wo

नज़्म

तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो

अख़्तर हुसैन जाफ़री

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तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो
काम सब हो चुका जो करना था

भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसे
सुब्ह तक, आँसुओं से भरना था

वो सुख़न उस के मुद्दआ में नहीं
मुझ को जिस बात से मुकरना था

कोई तक़सीम-ए-कार-ए-महर-ओ-नुजूम
या हिसाब-ए-शब-ए-नुज़ूल कोई

दश्त-ए-ला-हासिली की महदूदात
शहर-ए-महरम का अर्ज़ ओ तूल कोई

कुछ नहीं दरमियाँ जज़ा न सज़ा
संग, दुश्नाम, दाग़, फूल कोई

उस तरफ़ अब रुख़-ए-तअल्लुक़ है
जहाँ सूद-ओ-ज़ियान-ए-ज़ात नहीं

डर नहीं नींद टूट जाने का
पास-ए-वादा की एहतियात नहीं

मुझ को जिस बात से मुकरना था
उस के दावे में अब वो बात नहीं

भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसे
सुब्ह तक, आँसुओं से भरना था

तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो
काम सब हो चुका जो करना था