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तन्हाई | शाही शायरी
tanhai

नज़्म

तन्हाई

शकील जाज़िब

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याद की किरनें परियाँ बन कर
अपनी बाहोँ में लिपटा कर

तेरा चाँद सा सुंदर मुखड़ा
सोचों के बे-नूर खंडर में दुर आती हैं

और मैं सोच के तपते थल में
तेरे साथ गुज़ारी शामें

एक इक कर के गिनता हूँ
जब मैं तन्हा होता हूँ