याद की किरनें परियाँ बन कर
अपनी बाहोँ में लिपटा कर
तेरा चाँद सा सुंदर मुखड़ा
सोचों के बे-नूर खंडर में दुर आती हैं
और मैं सोच के तपते थल में
तेरे साथ गुज़ारी शामें
एक इक कर के गिनता हूँ
जब मैं तन्हा होता हूँ

नज़्म
तन्हाई
शकील जाज़िब
नज़्म
शकील जाज़िब
याद की किरनें परियाँ बन कर
अपनी बाहोँ में लिपटा कर
तेरा चाँद सा सुंदर मुखड़ा
सोचों के बे-नूर खंडर में दुर आती हैं
और मैं सोच के तपते थल में
तेरे साथ गुज़ारी शामें
एक इक कर के गिनता हूँ
जब मैं तन्हा होता हूँ