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तन्हाई | शाही शायरी
tanhai

नज़्म

तन्हाई

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

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पत्ते अपने सायों में क्या ढूँडते हैं
ढूँडते ढूँडते

शाख़ से टूट के
अपने ही इन सायों पर गिर जाते हैं

नीली चिड़िया
शाम की नीली रौशनियों में

भीगे पर फैलाती है
पर फैलाने की लज़्ज़त से

ख़्वाब-ज़दा हो जाती है
भूले बिसरे सपने देखती

आँखें मूँदती आँखें खोलती
चुपके से सो जाती है