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तनासुख़ | शाही शायरी
tanasuKH

नज़्म

तनासुख़

हिमायत अली शाएर

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जब एक सूरज ग़ुरूब होता है
कम-नज़र लोग ये समझते हैं

अब अँधेरा ज़मीं की तक़दीर हो गया है
ज़माना ज़ंजीर हो गया है

उन्हें ख़बर क्या
कि मेहर-ओ-माह-ओ-नुजूम सारे

तो रौशनी के हैं इस्तिआ'रे
तुलूअ' का दिल-फ़रोज़ मंज़र

ग़ुरूब का दिल-शिकन नज़ारा
अज़ल से उस रौशनी का परतव है

जो मुसलसल सफ़र के आलम में
हर मकाँ ला-मकाँ को अपने जिलौ में ले कर

रवाँ-दवाँ है
ये रात और दिन

हर एक ज़ाहिर हर एक बातिन
हर एक मुमकिन

उसी तसलसुल का ज़ेर-ओ-बम है
निगार-ए-फ़ितरत का हुस्न-ए-रम है

उफ़ुक़ उफ़ुक़ पर यही रक़म है
कि जो अदम है

वो ज़िंदगी का नया जनम है