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तमसील | शाही शायरी
tamsil

नज़्म

तमसील

अनवर नदीम

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जब ये बारिश ज़रा भी थमती है
दूर बिजली चमकने लगती है,

फिर क़यामत का शोर होता है,
अब्र फिर यूँ बरसने लगता है,

जैसे नज़रों के सामने अक्सर
हुस्न की बिजलियाँ चमकती है,

इश्क़ जब ज़िंदगी का तालिब हो
हुस्न बन कर अज़ाब आ जाए,

पत्थरों का मिज़ाज ले आए
सख़्तियाँ माँग ले चटानों से,

जज़्बा-ए-रहम को फ़ना कर दे
इश्क़ मजबूर हो के आख़िर मैं,

अपनी आँखों से ख़ून बरसा दे,