तअ'ल्लुक़ मुझ में तुम में क्या है
तुम मानो न मानो
तुम उसे ठुकराओ या झुटलाओ लेकिन ये हक़ीक़त है
तुम्हें मेरी ज़रूरत है
बहुत ख़ुश-दीद हैं आँखें तुम्हारी
ख़ुश-नज़र भी हैं
मगर क्या अपनी आँखों से
कभी तुम अपनी आँखें देख सकती हो
नज़्म
तलाज़ुम
अज़ीज़ क़ैसी