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तलाज़ुम | शाही शायरी
talazum

नज़्म

तलाज़ुम

अज़ीज़ क़ैसी

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तअ'ल्लुक़ मुझ में तुम में क्या है
तुम मानो न मानो

तुम उसे ठुकराओ या झुटलाओ लेकिन ये हक़ीक़त है
तुम्हें मेरी ज़रूरत है

बहुत ख़ुश-दीद हैं आँखें तुम्हारी
ख़ुश-नज़र भी हैं

मगर क्या अपनी आँखों से
कभी तुम अपनी आँखें देख सकती हो