एक मेहराब फिर दूसरी फिर कई
बे-कराँ तीरगी में हुवैदा हुईं
कोई था
कोई है
कोई होगा कहीं
साअ'तें तीन इक साथ पैदा हुईं
रूह के हाथ मेरे बदन का गला
घूँट कर थक गए
हाथ मेरे बदन के भी उट्ठे मगर
दामन-ए-ख़्वाहिश-ए-राएगाँ तक गए
उँगलियाँ टूट कर किर्चियाँ हो गईं
मुट्ठियाँ बंद होने से मुझ पर खुला
हड्डियाँ काँच की मेरे हाथों में थीं
अब मिरे जिस्म में मेरी ही किर्चियाँ
ढूँढती फिर रही हैं मुझे और मैं
अपने टूटे हुए हाथ थामे हुए
ख़ौफ़ की इस गुफा में छुपा हूँ जहाँ
एक मेहराब फिर दूसरी फिर कई
बे-कराँ तीरगी में हुवैदा हुईं
कोई था
कोई है
कोई होगा कहीं
साअ'तें तीन इक साथ पैदा हुईं
नज़्म
तलाश
ज़ुहूर नज़र