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तलाश | शाही शायरी
talash

नज़्म

तलाश

आसिफ़ रज़ा

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ग़ुस्ल-ए-तहारत के लिए डूबा उफ़ुक़ में आफ़्ताब
अफ़रोख़्ता क़िंदील अपनी हाथ में अपने लिए

राहिबाना रात फिरती है
फ़लक पर सोगवार

जुस्तुजू से शल हैं अब
चप्पू चलाते हाथ माह ओ साल के

बे-सब्र, झुक कर हाथ से अपने फ़ना
वस्त-ए-समुन्दर में उठाती है भँवर

होती है मोहलत ख़त्म
अब तो पर्दा-ए-इख़्फ़ा उठा

मेरे मुक़द्दस ख़्वाब की ताबीर तू
अपनी झलक मुझ को दिखा दे एक बार

कि छीन लेने को फ़ना है मुझ से तेरा इंतिज़ार