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तलाश | शाही शायरी
talash

नज़्म

तलाश

अफ़रोज़ आलम

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यूँ लगता है
पिछले कुछ सालों से

शब की सियाही गहरी हो गई है
शायद एक लम्हे को दूसरा लम्हा भी नहीं सूझता

ज़ी-फ़हम दानिश-वर
अपने एहसास पे लगे ज़ख़्मों को

माह-ओ-अंजुम बनाए
किसी जदीद सूरज के तुलूअ' होने के मंज़र

मा'सूम जियाले
अपने ज़ख़्मों को सँभाले

नए वार से बचने की तलाश में
कोई किसी के दोस्ती-भरे सफ़ेद घर में बे-फ़िक्र

कोई किसी के दुआओं का मुंतज़िर