अब हम अपने शहर की गलियाँ किन लोगों के नाम करें
पहले अक्सर नाम-पते अफ़रंगी थे
चंद शहीदों के कत्बे
भूली-बिसरी सदियों से भी नाम चुने
फिर इस्लामी शहज़ादों ने दान दिया
दान की ख़ातिर हम ने अपना मान दिया
अब तो ऐसी जंग छिड़ी है
सारे शहीद और सारे ग़ाज़ी
सारे काफ़िर सारे नमाज़ी
सब ही अपने दुश्मन हैं
अब हम अपने शहर की गलियाँ किन लोगों के नाम करें
किन लोगों से भीक मिलेगी
किन लोगों को राम करें
नज़्म
तलाश
अबरारूल हसन