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तहरीर | शाही शायरी
tahrir

नज़्म

तहरीर

बलराज कोमल

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मैं ने फ़राज़-ए-जिस्म पर
मेहराब लिख दिया

जब रात ढल गई
मैं ने फ़सील-ए-शहर पर

महताब लिख दिया
मैं रात-भर

बरहना जिस्म पर लिखा गया
मैं ने सुनहरे जिस्म में

बोई थी दास्ताँ
मैं ने सियाह रात को

सौंपा था माहताब
वो रात

मेरे दिल पे इज़्तिराब लिख गई
वो रात

दूर तक
सुनहरी धूप सुर्ख़ फूल

सैल-ए-आफ़्ताब लिख गई