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तबीअ'त के रंग | शाही शायरी
tabiat ke rang

नज़्म

तबीअ'त के रंग

ज़ेहरा अलवी

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कभी कभी
जी ये चाहता है

चाँद तक की सीढ़ी बनाऊँ
बादल हवा में उड़ा दूँ

ले कर रंगों की कच्ची पेंसिल
रंगोली सी क़ौस-ए-क़ुज़ह बनाऊँ

चाँद से खेलूँ
आबशार फ़ज़ा में बहाऊँ

कभी कभी जी चाहता है
कुछ उन चाहा सा