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स्वागत | शाही शायरी
swagat

नज़्म

स्वागत

आदिल हयात

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कोई आवाज़ जब भी सनसनाती है
कभी सुनसान रातों में

तो ये एहसास होता है कि जैसे यक-ब-यक आ कर
हवा का तेज़ झोंका मेरे दरवाज़े की कुंडी

खटखटाता है
मगर पट खोलता हूँ जब

मिरी महरूमियाँ हाथों को फैलाए
स्वागत मेरा करती हैं