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jinhen main DhunDhta tha aasmanon mein zaminon mein wo nikle mere zulmat-KHana-e-dil ke makinon mein
नज़्म
आदिल हयात
कोई आवाज़ जब भी सनसनाती है कभी सुनसान रातों में तो ये एहसास होता है कि जैसे यक-ब-यक आ कर हवा का तेज़ झोंका मेरे दरवाज़े की कुंडी खटखटाता है मगर पट खोलता हूँ जब मिरी महरूमियाँ हाथों को फैलाए स्वागत मेरा करती हैं