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सूखा पेड़ | शाही शायरी
sukha peD

नज़्म

सूखा पेड़

मुनीबुर्रहमान

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उस बाग़ में पेड़ थे बहुत से
जितने थे सभी हरे-भरे थे

सिर्फ़ एक उस झुण्ड से जुदा था
बे-बर्ग उदास इक तरफ़ खड़ा था

देखा तो वहीं ठहर गया मैं
बे-नाम ग़मों से भर गया मैं

''क्यूँ रुक गए'' तुम ने मुझ से पूछा
मैं चुप रहा क्या जवाब देता

कहता कि ये नक़्श हसरतों का
पैकर है गुज़िश्ता मौसमों का

ये मेरी तुम्हारी दास्ताँ है
मरते हुए इश्क़ का निशाँ है