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सूई | शाही शायरी
sui

नज़्म

सूई

ज़ीशान साहिल

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मैं तुम्हें
उस नज़्म से बनाऊँगा

जो मैं ने
अजाइब-घर की सीढ़ियों पर

बैठ कर लिखी है
उस उदासी से बनाऊँगा

जो मेरी नज़्म
और आँखों में मौजूद है

मैं तुम्हें
उस ख़्वाब से बनाऊँगा

जो मेरी रात से बाहर नहीं आता
और उस दिल से बनाऊँगा

जिस में तुम्हारी याद
एक सूई की तरह अटकी हुई है

मैं तुम्हें बनाऊँगा
इस उदासी की तरह

इस नज़्म की तरह
चमकती हुई और नोक-दार

इस सूई की तरह