कौन है सूदी बेगम 
उस को जानते हो तुम 
वो जिस के क़ब्ज़े में थे रज़िया के कंगन 
जिस के हाथों में थी रज़िया की हर आती जाती साँस की डोर 
जिस के पास पड़े थे उस के गिरवी ख़्वाब 
रज़िया की शादी सर पर थी 
और दिल में था 
सूदी बेगम की सूदी आँखों का ख़ौफ़ 
सूदी बेगम के चंगुल से 
सूद-ओ-ज़ियाँ के इस जंगल से 
रज़िया भागना चाहती थी 
वर्ना इक दिन सूदी बेगम 
उस के इक इक पल का सोना खा जाएगी 
और उस के बालों में चाँदी आ जाएगी 
रज़िया के अंदेशे उस को डसते रहते 
रातों को उठ उठ कर इस पर हँसते रहते 
बे-कल बे-कल रोती रहती 
रज़िया भल-भल रोती रहती 
उस के होंटों और गालों से हिजरत कर गई सारी लाली 
रोते रोते इक दिन रज़िया की आँखें भी हो गईं ख़ाली 
ख़ाली आँगन ख़ाली बर्तन 
और अंदर के ख़ाली-पन से आजिज़ आ कर 
रोज़ रोज़ की इस उलझन से आजिज़ आ कर 
उस ने इक तरकीब निकाली 
गुल्लक तोड़ा 
सिक्के जोड़े 
चप्पल पहनी 
मजबूरी की चादर ओढ़ी 
घर से निकली 
रिक्शा पकड़ा 
और इक बैंक के दरवाज़े पे जा उतरी वो 
बैंक में पहला क़दम रखा तो उस की चप्पल 
मोटे से क़ालीन में धँस गई 
रज़िया फिर ग़ुंडों में फँस गई
        नज़्म
सूदी बेगम
इमरान शमशाद

