मौत अपनी न अमल अपना न जीना अपना
खो गया शोरिश-ए-गीती में क़रीना अपना
नाख़ुदा दूर हवा तेज़, क़रीं काम-ए-नहंग
वक़्त है फेंक दे लहरों में सफ़ीना अपना
अरसा-ए-दहर के हंगामे तह-ए-ख़ाब सही
गर्म रख आतिश-ए-पैकार से सीना अपना
साक़िया रंज न कर जाग उठेगी महफ़िल
और कुछ देर उठा रखते हैं पीना अपना
बेश-क़ीमत हैं ये ग़म-हा-ए-महब्बत मत भूल
ज़ुल्मत-ए-यास को मत सौंप ख़ज़ीना अपना
नज़्म
सुरूद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़