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सुरुद-ए-शबाना | शाही शायरी
surud-e-shabana

नज़्म

सुरुद-ए-शबाना

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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ग़म है इक कैफ़ में फ़ज़ाए-हयात
ख़ामुशी सज्दा-ए-नियाज़ में है

हुस्न-ए-मासूम ख़्वाब-ए-नाज़ में है
ऐ कि तू रंग-ओ-बू का तूफ़ाँ है

ऐ कि तू जल्वा-गर बहार में है
ज़िंदगी तेरे इख़्तियार में है

फूल लाखों बरस नहीं रहते
दो घड़ी और है बहार-ए-शबाब

आ कि कुछ दिल की सुन सुना लें हम
आ मोहब्बत के गीत गा लें हम

मेरी तन्हाइयों पे शाम रहे?
हसरत-ए-दीद ना-तमाम रहे?

दिल में बेताब है सदा-ए-हयात
आँख गौहर निसार करती है

आसमाँ पर उदास हैं तारे
चाँदनी इंतिज़ार करती है

आ कि थोड़ा सा प्यार कर लें हम
ज़िंदगी ज़र-निगार कर लें हम