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सुर्ख़ अनारों के मौसम में | शाही शायरी
surKH anaron ke mausam mein

नज़्म

सुर्ख़ अनारों के मौसम में

सरमद सहबाई

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सुर्ख़ अनारों के मौसम में
रेशम के मल्बूस से फूटा

उर्यानी की धूप का झरना
आईने में

गर्दन के गुल-दान से निकला
फूल सा चेहरा

आहिस्ता से
गुँधे हुए बालों की डाली

गिर के घाट पे झुक जाती है
इक लम्हे को हर शय जैसे रुक जाती है

पलक झपकते आईने में
इक ख़ूनी डाइन का अक्स उभर आता है

छत पर इक फ़ानूस की मुट्ठी
आहिस्ता से खुल जाती है

जैसे चील के पर खुलते हैं
ख़ुशबू रंग हवा और साए

उस लम्हे पथरा जाते हैं
आँखों की शीशी में कैसी ज़ुमरों का तेज़ाब भरा है

क़तरा क़तरा
इस तेज़ाब की लफ़्ज़ों में तक़्तीर हुई है

देखते देखते
आस की सूरत

मेरी ही तस्वीरी हुई है