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सुनो ना जानाँ | शाही शायरी
suno na jaanan

नज़्म

सुनो ना जानाँ

असरा रिज़वी

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ये लोग मुझ को बता रहे हैं
हमारी आँखें बहुत हैं रौशन

ये बर्क़ जैसी चमक रहीं हैं
कि जुगनूँ की तड़प रुकी हो

है बे-क़रारी ग़ज़ाल जैसी
ख़ुमार की सी है कैफ़ियत भी

धनक के जितने भी रंग होंगे
हमारी आँखों में बस गए हैं

मगर ऐ जानाँ
उन्हें बताऊँ मैं किस तरह से

ये जगमगाती ये झिलमिलाती सी मेरी आँखें
ख़ुमार से पुर ग़ज़ाल जैसी

तुम्हारे ख़्वाबों के रंग ले कर
अमीन हैं कितने रत-जगों की

ये सुर्ख़ आँखें
तलाश में जो भटक रही हैं

शुआएँ रंगों की छट रही है
सुनो न जानाँ

ये लोग मुझ को बता रहे हैं
कि मेरी आँखें बहुत है रौशन