ख़मोश रहना, कभी सर हिला के सुन लेना
हवा में चाँद बनाना, बना के चुन लेना
अजीब दौर था चारों तरफ़ उदासी थी
ज़मीन अपनी ही तन्हाइयों की प्यासी थी
कभी शराब कभी शायरी कभी महफ़िल
फिर इस के बाद धड़कता हुआ अकेला दिल
ख़ुद अपने घर में ही घर से अलग-थलग रहना
किताब-ए-जाँ के लिए रात भर ग़ज़ल कहना
ये और बात बड़े हौसले का शायर था
मैं अपनी नींद का रूठा हुआ मुसाफ़िर था
नज़्म
सुना यही है
जावेद नासिर