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सुना है ख़ुद को | शाही शायरी
suna hai KHud ko

नज़्म

सुना है ख़ुद को

दीप्ति मिश्रा

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अक्सर दिखाई दे जाते हैं
कहीं न कहीं

ख़ुशी के आँसू
लेकिन

क्या कभी किसी ने
ग़म की हँसी भी सुनी है

मैं ने सुनी है
अक्सर सुनती हूँ

बे-साख़्ता खिलखिलाते हुए
सुना है ख़ुद को मैं ने

कितनी ही बार
हर बार

हँसी में उड़ जाता है
सारा ग़म

कुछ पुल के लिए
बस

कुछ पल के लिए