आख़िर-ए-शब थी
वो सेहन-ए-मस्जिद में बे-सुध पड़ा सो रहा था
मैं ने उस को जगाया
उठ...
ये शहादत का तकबीर का वक़्त है
दुआओं की तस्ख़ीर का वक़्त है
वो उठा... मेरा क़ातिल जिसे मैं ने ख़ुद ही उठाया
उठा...
और मेहराब-ए-मस्जिद में मेरे लहू से चराग़ाँ हुआ

नज़्म
सुब्ह
सज्जाद बाक़र रिज़वी