सुब्ह-दम
उस की आँखों में
ढलती हुई रात का नश्शा-ए-वस्ल है
जिस्म
जैसे कि इक लहलहाती हुई फ़स्ल है

नज़्म
सुब्ह-दम
प्रेम कुमार नज़र
नज़्म
प्रेम कुमार नज़र
सुब्ह-दम
उस की आँखों में
ढलती हुई रात का नश्शा-ए-वस्ल है
जिस्म
जैसे कि इक लहलहाती हुई फ़स्ल है