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सो अब भी है | शाही शायरी
so ab bhi hai

नज़्म

सो अब भी है

नज़र बर्नी

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वही बेगम की ख़ूँ-ख़्वारी जो पहले थी सो अब भी है
वही देरीना बीमारी जो पहले थी सो अब भी है

वही टर-टर वही ख़फ़्गी वही ग़म्ज़े वही इश्वे
वही तानों की बीमारी जो पहले थी सो अब भी है

बुढ़ापे में भी इन को शौक़ हैं अहद-ए-जवानी के
''लिपस्टिक'' की ख़रीदारी जो पहले थी सो अब भी है

वही है रूठना इन का वही मैके की है धमकी
वही ज़िल्लत वही ख़्वारी जो पहले थी सो अब भी है

कभी है सास का रोना कभी ननदों से है झगड़ा
ज़बाँ है इन की ''दो-धारी'' जो पहले थी सो अब भी है

फ़क़त अपने ही मैके की किया करती हैं तारीफ़ें
मेरी अमाँ से बे-ज़ारी जो पहले थी सो अब भी है

अदब का डॉक्टर बन कर मिला क्या हम ग़रीबों को
ग़रीबी और बेकारी जो पहले थी सो अब भी है

हुई शादी हुए बच्चे 'नज़र' का हाल है पतला
वही अब भी है लाचारी जो पहले थी सो अब भी है