सियाह सायों की तिश्नगी में
उदास लम्हों को साथ रक्खो
शिकस्ता लफ़्ज़ों के साहिलों पर
सफ़ेद झागों में अक्स ढूँडो
खंडर की बोसीदगी में छुप कर
पुरानी यादों के होंट चूमो
ख़ला के शानों पे हाथ रख कर
सियाही-ए-शब की ज़ुल्फ़ सूँघो
सहर की नाज़ुक हवा की उजली कलाई पकड़ो
बदन की पीली बरहनगी को बयान कर दो
नज़्म
सियाह सायों की तिश्नगी में
आदिल मंसूरी