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सीढ़ियाँ | शाही शायरी
siDhiyan

नज़्म

सीढ़ियाँ

परवीन शीर

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दूरियों की धुँद में गुम
हो चुका है कारवाँ अब

उठ रहा है दूर तक काला धुआँ जो
मुड़ के उस को तक रहा है

घुप-अँधेरे ग़ार की तह में अकेली
ना-तवाँ इक ज़िंदगी पंजों के बल

पत्थर की ऊँची सीढ़ियों पर
हाँफती कोशिश की बैसाखी को थामे

रेंगती है!
पानियों की आग में झुलसी हुई नज़रें टिकी हैं

दूर ऊँचाई पे दरवाज़े से आती रौशनी पर
चार-सू बिखरे हुए बस

ना-उमीदी के ख़स-ओ-ख़ाशाक हैं
ऊपर को जाती अन-गिनत पत्थर की ऊँची

सीढ़ियाँ हैं!!