सूरज ने दिया अपनी शुआओं को ये पैग़ाम
दुनिया है अजब चीज़ कभी सुब्ह कभी शाम
मुद्दत से तुम आवारा हो पहना-ए-फ़ज़ा में
बढ़ती ही चली जाती है बे-मेहरी-ए-अय्याम
ने रेत के ज़र्रों पे चमकने में है राहत
ने मिस्ल-ए-सबा तौफ़-ए-गुल-ओ-लाला में आराम
फिर मेरे तजल्ली-कदा-ए-दिल में समा जाओ
छोड़ो चमनिस्तान ओ बयाबान ओ दर-ओ-बाम
नज़्म
शुआ-ए-उम्मीद
अल्लामा इक़बाल