कैसे कैसे वहम पलते हैं बशर के ज़ेहन में भी
चंद जुरए शेर का ख़ूँ-नोश करना रात को मैथन से पहले
या कुशादा चाँदनी में कैफ़-ए-अंदज़-ए-विसाल-ए-शौक़ होना
वज्ह-ए-औलाद-ए-नरीना
और फिर बुक़रात ने भी ये कहा था
मर्द अपने दाएँ ख़ुसिये पर जो रस्सी बाँध ले मिलने से पहले
उस की औरत शर्तिया लड़का जनेगी
लेकिन इस अंदाज़ की हर्ज़ा-सराई
कब किसी के काम आई
कैसे कैसे वहम पलते हैं बशर के ज़ेहन में भी
नज़्म
शर्तिया लड़का
कृष्ण मोहन