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शनासा आहटें | शाही शायरी
shanasa aahaTen

नज़्म

शनासा आहटें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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इधर कई दिनों से
दूर दूर तक भी नींद का पता नहीं

कसीले कड़वे ज़ाइक़े
टपक रहे हैं आँख से

कई पहर गुज़र चुके
तवील काली रात के

मैं सुन रहा हूँ देर से
हज़ारों बार की सुनी-सुनाई दस्तकें

कभी शनासा आहटें
कभी नशीली सरसराहटें

किवाड़ खोलते ही
दस्तकें!

वो आहटें नशीली सरसराहटें
ख़िराज रूठी नींद का लिए हुए चली गईं!