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शनाख़्त | शाही शायरी
shanaKHt

नज़्म

शनाख़्त

परवीन शीर

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हर एक क़तरा
समुंदरों में समा गया है

वजूद अपना गँवा चुका है
इसी यक़ीं पर

कि अब वो क़तरे से इक समुंदर
की बे-करानी में ढल गया है

मगर यहाँ है
बहुत अकेला जो एक क़तरा

वजूद अपना सँभाल कर मुस्कुरा रहा है
कि उस के अंदर कई समुंदर समा गए हैं