ज़ेहन में अज़्मत-ए-अज्दाद के क़िस्से ले कर
अपने तारीक घरोंदों के ख़ला में खो जाओ
मरमरीं ख़्वाबों की परियों से लिपट कर सो जाओ
अब्र पारों पे चलो, चाँद सितारों में उड़ो
यही अज्दाद से वर्से में मिला है तुम को
दूर मग़रिब की फ़ज़ाओं में दहकती हुई आग
अहल-ए-सरमाया की आवेज़िश-ए-बाहम न सही
जंग-ए-सरमाया ओ मेहनत ही सही
दूर मग़रिब में है मशरिक़ की फ़ज़ा में तो नहीं
तुम को मग़रिब के बखेड़ों से भला क्या लेना?
तीरगी ख़त्म हुई सुर्ख़ शुआएँ फैलीं
दूर मग़रिब की फ़ज़ाओं में तराने गूँजे
फ़तह-ए-जम्हूर के इंसाफ़ के आज़ादी के
साहिल-ए-शर्क़ पे गैसों का धुआँ छाने लगा
आग बरसाने लगे अजनबी तोपों के दहन
ख़्वाब-गाहों की छतें गिरने लगीं
अपने बिस्तर से उठो
नए आक़ाओं की ताज़ीम करो
और फिर अपने घरोंदों के ख़ला में खो जाओ
तुम बहुत देर बहुत देर तलक सोए रहे
नज़्म
शहज़ादे
साहिर लुधियानवी