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शहर | शाही शायरी
shahr

नज़्म

शहर

ऐन रशीद

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शहर तू अपने गंदे पाँव पसारे दरिया के किनारे लेटा है
और तेरे सीने पर रेंगती हुई च्यूंटियाँ सूरज को घूर रही हैं

जब निस्फ़ दर्जन ग़ैर-मुल्की हकीमों ने मुश्तरका तौर पर ऐलान किया
मरज़ संगीन है और ये बहुत जल्द ही मर जाएगा

तो किसी चेचक-ज़दा बच्चे की तरह तू ने उन्हें देखा और ख़ामोश हो रहा
ग़लीज़ बदकार बे-रहम

शहर लोग कहते हैं तू बदकार है
और मैं ने ख़ुद देखा है

सर-ए-शाम
तेरे रंगे चेहरे वाली औरतें लड़खड़ाते नौ-जवानों को निगल जाती हैं

बे-रहम
जब रात गए तेरे दानिश-वर रिक्शा किए ख़ुद-कुशी करने जाते हैं

तू ख़ामोश रहता है
शहर मैं तेरी दीवाना-कुन ख़्वाहिशों से बे-ज़ार हूँ

शहर तू अपने गंदे लिबास कब उतारेगा
शहर लोग कहते हैं मरने के बाद मेरी हड्डी से बटन बनाएँगे

शहर तेरी दीवारों पर ये कैसी तहरीरें हैं
शहर मैं ने महीनों से अख़बार नहीं पढ़ा

शहर तू चाय में शकर डालना भूल गया है
और ये तेरे आँसुओं की तरह लग रही है

शहर मुझे नींद आ रही है थपक कर सुला दे