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शफ़्फ़ाफ़ रंग | शाही शायरी
shaffaf rang

नज़्म

शफ़्फ़ाफ़ रंग

साहिल अहमद

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शाम की आहट जब आने लग जाए
साबिक़ा लिबास उतार देने के अमल को

मीज़ान-ए-नज़र पर रख लेना चाहिए
ताकि वो मैला लिबास शाम का ही हिस्सा न बन जाए

हमें उजले लिबास की फ़िक्र करनी चाहिए
सफ़ेद उजला शफ़्फ़ाफ़ रंग

ताहिरा लिबास का ही हिस्सा है
और हम इस सुब्ह-याफ़ता लिबास के

पहनने के अहल साबित हो गए तो
नजात ही नजात है

सिफ़ात ही सिफ़ात है
लेकिन हम अमल-ए-ताहिरा से गुज़रे बग़ैर

उजला लिबास पहन कर भी
अपनी गर्द-ए-कशाफ़ात छुपा नहीं पाएँगे

बेहतर है अमल-ए-जारीया को ही अफ़ज़ल मानें
नक़्श-ए-मुबीन हासिल हो जाए

मकाँ को मकीं, मकीं को मकाँ मिल जाए
आसमाँ को ज़मीं ज़मीं को आसमाँ मिल जाए