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शब-ए-हिज्र कोई कहाँ गया | शाही शायरी
shab-e-hijr koi kahan gaya

नज़्म

शब-ए-हिज्र कोई कहाँ गया

मुमताज़ कँवल

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तुझे याद है सभी जाँ-ब-लब तिरे रास्तों में खड़े रहे
कि दम-ए-विदाअ' तुझे देख लें

कहीं झोलियाँ थीं खुली हुई
कहीं चश्म चश्म अजीब रंगों का रक़्स था

कोई ख़्वाब था कोई अक्स था
तुझे याद है तो बता मुझे

पस-ए-शाम-ए-शहर हवा-ए-दहर को क्या हुआ
शब-ए-हिज्र कोई कहाँ गया

मैं उठा जो बिस्तर-ए-ख़्वाब से
तो कोई न था मिरे चार-सू

जो बता सके
जो गवाह हो

सर-ए-बाम किस की नज़र बुझी
पस-ए-शाम किस का लहू जला