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शाम से ता-ब-सहर कितने सितारे टूटे | शाही शायरी
sham se ta-ba-sahar kitne sitare TuTe

नज़्म

शाम से ता-ब-सहर कितने सितारे टूटे

अहसन अहमद अश्क

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कितनी ज़ौ-पाश उमीदों के सहारे छोटे
चाँद इक मस्त शराबी की तरह वारफ़्ता

कोहर की धुँद में चलता रहा गिरता पड़ता
दश्त-ए-तन्हाई में उठते रहे ख़ुश-रंग सराब

रंग की लहरों पे खिलते रहे नसरीन-ओ-गुलाब
सर्व के साए में उलझे हुए अन्फ़ास के राग

माज़ी-ओ-हाल के संगम पे चलाते रहे आग
पहले इक आग लगी आग फिर इक याद बनी

याद अश्कों में नहा कर तिरे पैकर में ढली
मरमरीं पैकर-ए-अंदाज़ ब-ख़्वाब-आलूदा

जैसे ख़य्याम की तख़्ईल शराब-आलूदा
यक-ब-यक अर्श से फिर कोई सितारा टूटा

दिल लरज़ उट्ठा कि इक और सहारा टूटा
तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह ढल के कमर तक पहुँची

रात बल खाती हुई बाम-ए-सहर तक पहुँची