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शाम की उड़ान | शाही शायरी
sham ki uDan

नज़्म

शाम की उड़ान

राशिद अनवर राशिद

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शाम के सुरमई अँधेरे में
इक परिंदा उड़ान भरता है

चाहता है किसी का साथ मिले
रात की बे-क़रारियों का अज़ाब

याद कर के वो काँप उठता है
इस लिए शाम के धुँदलके में

घोंसले को वो छोड़ देता है
और मुसलसल सफ़र में रहता है

लेकिन उस का सफ़र सदा की तरह
तिश्नगी का अज़ाब सहता है