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शाइ'र | शाही शायरी
shair

नज़्म

शाइ'र

अख़्तर पयामी

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आज फिर सँवला रहा है आरिज़-ए-रू-ए-हयात
मौत के क़ानून पर है ज़िंदगी का गर्म हाथ

झिलमिलाता जा रहा है तुंद आँधी में चराग़
मिल रहा है ख़ून के क़तरों से मंज़िल का सुराग़

आ रहा है फ़ाक़ा-कश मज़दूर के चेहरे पे रंग
खुरदुरे हाथों से अब टकरा रहे हैं जाम-ओ-संग

छुट रही है नब्ज़-ए-हस्ती आ रहा है इंक़लाब
उठ रहा है आज फ़र्सूदा अक़ाएद का सुहाग

ज़ीस्त की गर्दन में है पज़मुर्दा अफ़्सानों का हार
मौत के शानों पे है सलमा-ए-गेती का निखार

बन रही हैं अब ज़माना में नई पगडंडियाँ
जिन से गुज़रेगा जवाँ फ़िक्रों का पहला कारवाँ

दास्तान-ए-अहद-ए-पारीना है ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू
अब छलकता है ख़ुम-ओ-साग़र से इंसाँ का लहू

बज़्म-ए-हुस्न-ओ-नाज़ की दिलदारियाँ भी सो गईं
हिज्र की रातों की वो बे-ख़ूबियाँ भी हो गईं